Sunday, February 6, 2011

शिवजी की आरती

शिव
जी की बड़ी आरती ।

जय
शिव
ओमकारा हो शिव
पार्वती प्यारा ,हो शिव
ऊपर
जलधारा ।

ब्रह्मा विष्णु
सदाशिव
अर्धंगी धारा ।


हर
हर
हर
महादेव


एकानन
चतुरानन
पंचानन
राजै

हंसासन
गरुडासन
वृषवाहन साजै । ।
दोए भुज चार चतुर्भुज
दशभुज ते सोहै । तीनों रूप
निरखता त्रिभुवन मन मोहै ।

अक्षमाला वनमाला मुंडमाला धारी ।
चन्दन मृगमद सोहे भले
शशिधारी । ।
श्वेताम्बर पीताम्बर
बाघम्बर अंग ।सनकादिक
ब्रह्मादिक मुनि आदिक संग ।

करमध्ये कमंडल चक्र
त्रिशूल धर्ता । दुःख
हरता जग पालन करता । ।
शिवजी के हाथों में कंगन ,
कानन में कुंडल , गल
मोतियाँ माला । ।
जटा में गंगा वीराजै ,
मस्तक में चंदा साजै, ओढत
मृगछाला । ।
चौसठ योगिनी मंगल गावत
नृत्य करत भैरू । बाजत ताल
मृदंगा अरु बाजत डमरू ।
सचिदानंद स्वरूपा त्रिभुवन
के राजा ।चारों वेद उचारत ,
अनहद के दाता । ।
सावित्री भावत्री पार्वती अंगी ।
अर्धंगी प्रियंगी शिव
गौरा संगी । ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
जानत अविवेका । प्रणव अक्षर
दोऊ मध्य ये तीनों एका । ।
पार्वती पर्वत में वीराजै
शंकर कैलाशा । आक धतूरे
का भोजन भस्मि में वासा । ।
श्री काशी में विश्वनाथ
वीराजै नंदा ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावै
महिमा अति भारी । ।
शिवजी की आरती जो कोई नर
गावे । कहत शिवानन्द
मनवांछित फल पावै । ।

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