Saturday, February 12, 2011

श्री गणेशस्त्रोतम्

सुवर्णवर्णसुन्दरं
सितैकदन्तबन्धुरं
गृहीतपाशकाङ्कुशं
वरप्रदाभयप्रदम्।
चतुर्भुजं त्रिलोचनं
भुजङ्गमोपवीतिनं
प्रफुल्लवारिजासनं
भजामि सिन्धुराननम्॥
किरीटहारकुण्डलं
प्रदीप्तबाहुभूषणं
प्रचण्डरत्नकङ्कणं
प्रशोभिताङ्घियष्टिकम्।
प्रभातसूर्यसुन्दराम्बरद्वयप्रधारिणं
सरत्नहेमनूपुरप्रशोभिताङ्घ्रिपङ्कजम्॥
सुवर्णदण्डमण्डितप्रचण्डचारुचामरं
गृहप्रदेन्दुसुन्दरं
युगक्षणप्रमोदितम्।
कवीन्द्रचित्तरञ्जकं
महाविपत्तिभञ्जकं
षडक्षरस्वरूपिणं भजे
गजेन्द्ररूपिणम्॥
विरिञ्चविष्णुवन्दितं
विरूपलोचनस्तुतं
गिरीशदर्शनेच्छया समर्पितं
पराम्बया।
निरन्तरं सुरासुरै:
सपुत्रवामलोचनै:
महामखेष्टकर्मसु स्मृतं
भजामि तुन्दिलम्॥
मदौघलुब्धचञ्चलालिमञ्जुगुञ्जितारवं
प्रबुद्धचित्तरञ्जकं
प्रमोदकर्णचालकम्।
अनन्यभक्तिमानवं
प्रचण्डमुक्तिदायं
नमामि नित्यमादरेण
वक्रतुण्डनायकम्॥
दारिद्रयविद्रावणमाशु
कामदं स्तोत्रं
पठेदेतदजस्त्रमादरात्।
पुत्री कलत्रस्वजनेषु
मैत्री पुमान्
भवेदेकवरप्रसादात्॥
अर्थ
जो सुवर्ण के समान गौर वर्ण
से सुन्दर प्रतीत होते हैं ;
एक ही श्वेत दन्त के
द्वारा मनोहर जान पडते हैं;
जिन्होंने हाथों में पाश
और अङ्कुश ले रखे हैं ; जो वर
तथा अभय प्रदान करनेवाले
हैं ; जिनके चार भुजाएँ और
तीन नेत्र हैं; जो सर्पमय
यज्ञोपवीत धारण करते हैं
और प्रफुल्ल कमल के आसन पर
बैठते हैं , उन गजानन का मैं
भजन करता हूँ। जो किरीट,
हार और कुण्डल के साथ
उद्दीप्त बाहुभूषण धारण
करते हैं ; चमकीले
रत्नों का कंगन पहनते हैं;
जिनके दण्डोपम चरण अत्यन्त
शोभाशाली हैं ,
जो प्रभातकाल के सूर्य के
समान सुन्दर और लाल
दो वस्त्र धारण करते हैं
तथा जिनके युगल चरणारविन्द
रत्नजटित सुवर्णनिर्मित
नुपूरों से सुशोभित हैं , उन
गणेशजी का मैं भजन
करता हँू। जिनका विशाल एवं
मनोहर चँवर सुवर्णमय दण्ड
से मण्डित है ; जो सकाम
भक्तों को गृह-सुख प्रदान
करनेवाले एवं चन्द्रमा के
समान सुन्दर हैं ; युगों में
क्षण का आनन्द लेनेवाले
हैं ; जिनसे कवीश्वरों के
चित्त का रञ्जन होता है;
जो बडी-
बडी विपत्तियों का भञ्जन
करनेवाले और षडक्षर
मन्त्रस्वरूप हैं , उन
गजराजरूपधारी गणेश का मैं
भजन करता हूँ। ब्रह्मा और
विष्णु
जिनकी वन्दना तथा विरूपलोचन
शिव जिनकी स्तुति करते हैं ;
जो गिरीश (शिव) के दर्शन
की इच्छा से
परा अम्बा पार्वती द्वारा समर्पित
हैं ; देवता और असुर अपने
पुत्रों और
वामलोचना पत्िनयों के साथ
बडे -बडे यज्ञों तथा अभीष्ट
कर्मो में निरन्तर
जिनका स्मरण करते हैं; उन
तुन्दिल देवता गणेश का मैं
भजन करता हूँ।
जिनकी मदराशिपर लुभाये हुए
चञ्चल भ्रमर मञ्जु
गुञ्जारव करते रहते हैं ;
जो ज्ञानीजनों के चित्त
को आनन्द प्रदान करनेवाले
हैं ; अपने कानों को सानन्द
हिलाया करते हैं और अनन्य
भक्ति रखनेवाले
मनुष्यों को उत्कृष्ट
मुक्ति देनेवाले हैं , उन
वक्रतुण्ड गणनायक का मैं
प्रतिदिन आदरपूर्वक भजन
करता हूँ। यह स्तोत्र
दरिद्रता को शीघ्र
भगानेवाला और अभीष्ट वस्तु
को देनेवाला है। जो निरन्तर
आदरपूर्वक इसका पाठ करेगा,
वह मनुष्य एकेश्वर गणेश
की कृपा से पुत्रवान्
तथा स्त्री एवं स्वजनों के
प्रति मित्रभाव से युक्त
होगा।

माँ दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अंबे दुख हरनी॥
निरंकार है
ज्योति तुम्हारी। तिहूँ
लोक फैली उजियारी॥
ससि ललाट मुख महा बिसाला।
नेत्र लाल भृकुटी बिकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरस करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लय कीन्हा।
पालन हेतु अन्न धन दीन्हा॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नासन हारी। तुम
गौरी शिव शङ्कर प्यारी॥
शिवजोगी तुम्हरे गुन
गावें। ब्रह्मा विष्णु
तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वति को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन्ह
उबारा॥
धरा रूप नरसिंह को अंबा।
परगट भई फाड कर खंबा॥
रच्छा करि प्रह्लाद बचाओ।
हिरनाकुस को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
छीर सिन्धु में करत बिलासा।
दया सिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में
तुम्हीं भवानी। महिमा अमित
न जाय बखानी॥
मातंगी धूमावति माता।
भुवनेस्वरि बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिनि।
छिन्नभाल भव दु :ख
निवारिनि॥
केहरि बाहन सोह भवानी।
लांगुर बीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खडग बिराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और तिरसूला।
जाते उठत शत्रु हिय सूला॥
नगरकोट में तुम्ही बिराजत।
तिहूँ लोक में डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम
मारे। रक्त बीज संखन
संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल काली को धारा। सेन
सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ संतन पर जब जब। भई
सहाय मातु तुम तब तब॥
अमर पुरी औरों सब लोका। तव
महिमा सब रहै असोका॥
ज्वाला में है
ज्योति तुम्हारी। तुम्हें
सदा पूजें नरनारी॥
प्रेम भक्ति से जो जस गावै।
दुख दारिद्र निकट नहि आवै॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन
लाई। जन्म मरन
ताको छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
जोग न हो बिन
शक्ति तुम्हारी॥
शङ्कर आचारज तप कीन्हो। काम
क्रोध जीति सब लीन्हो॥
निसिदिन ध्यान धरो शङ्कर
को। काहु काल
नहि सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप को मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
सरनागत ह्वै कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदंब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदंबा। दई
शक्ति नहि कीन्ह बिलंबा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरे दुख मेरो॥
आसा तृस्ना निपट सतावै।
रिपु मूरख
मोहि अति डरपावै॥
शत्रु नास कीजै महरानी।
सुमिरौं एकचित
तुमहि भवानी॥
करौ कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि सिद्धि दे करहु
निहाला॥
जब लगि जियौं दयाफल पाऊँ।
तुम्हरौ जस मैं
सदा सुनाऊँ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परम पद पावै॥
देवीदास सरन निज जानी। करहु
कृपा जगदंब
भवानी॥

Friday, February 11, 2011

॥ श्री सरस्वती चालीसा ॥

जय श्रीसकल बुद्घि बलरासी ।
जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी ॥
जय जय जय वीणाकर धारी ।
करती सदा सुहंस सवारी ॥
रुप चतुर्भुज धारी माता ।
सकल विश्व अन्दर
विख्याता ॥
जग में पाप बुद्घि जब
होती । तबहि धर्म
की फीकी ज्योति ॥
तबहि मातु का निज अवतारा ।
पाप हीन करती महितारा ॥
बाल्मीकि जी थे हत्यारा ।
तव प्रसाद जानै संसारा ॥
रामचरित जो रचे बनाई ।
आदि कवि पदवी को पाई ॥
कालिदास जो भये विख्याता ।
तेरी कृपा दृष्टि से माता ॥
तुलसी सूर आदि विद्घाना ।
और भये जो ज्ञानी नाना ॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा ।
केवल कृपा आपकी अमबा ॥
करहु कृपा सोई मातु भवानी ।
दुखित दीन निज
दासहिं जानी ॥
पुत्र करइ अपराध बहूता ।
तेहि न धरइ चित एकउ माता ॥
राखु लाज जननी अब मेरी ।
विनय करउं भांति बहुतेरी ॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा ।
कृपा करउ जय जय जगदम्बा ॥
मधुकैटभ जो अति बलवाना ।
बाहुयुद्घ विष्णु से
ठाना ॥
समर हजार पांच में घोरा ।
फिर भी मुख उनसे
नहीं मोरा ॥
मातु सहाय कीन्ह
तेहि काला । बुद्घि विपरीत
भई खलहाला ॥
तेहि ते मृत्यु भई खल
केरी । पुरवहु मातु मनोरथ
मेरी ॥
चण्ड मुण्ड जो थे
विख्याता । क्षण महु संहारे
उन माता ॥
रक्तबीज से समरथ पापी । सुर
मुन हृदय धरा सब कांपी ॥
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा ।
बार बार बिनवउं जगदंबा ॥
जगप्रसिद्घ जो शुंभ
निशुंभा । क्षण में बांधे
ताहि तूं अम्बा ॥
भरत-मातु बुद्घि फेरेउ जाई
। रामचन्द्र बनवास कराई ॥
एहि विधि रावन वध तू
कीन्हा । सुन नर
मुनि सबको सुख दीन्हा ॥
को समरथ तव यश गुन गाना ।
निगम अनादि अनंत बखाना ॥
विष्णु रुद्र जस सकैं न
मारी । जिनकी हो तुम
रक्षाकारी ॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी ।
नाम अपार है दानवभक्षी ॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा ।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा ॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता ।
कृपा करहु जब जब सुखदाता ॥
नृप कोपित को मारन चाहै ।
कानन में घेरे मृग नाहै ॥
सागर मध्य पोत के भंगे ।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे ॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में
। हो दरिद्र अथवा संकट में

नाम जपे मंगल सब होई । संशय
इसमें करइ न कोई ॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई । सबै
छांड़ि पूजें एहि भाई ॥
करै पाठ नित यह चालीसा ।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा ॥
धूपादिक नैवेघ चढ़ावै ।
संकट रहित अवश्य हो जावै ॥
भक्ति मातु की करै हमेशा ।
निकट न आवै ताहि कलेशा ॥
बंदी पाठ करै सत बारा ।
बंदी पाश दूर हो सारा ॥
रामसागर बांधि हेतु भवानी ।
कीजै कृपा दास निज जानी ॥
॥ दोहा ॥
मातु सूर्य कान्त तव,
अन्धकार मम रुप ।
डूबन से रक्षा करहु परुं न
मैं भव कूप ॥
बलबुद्घि विघा देहु मोहि,
सुनहु सरस्वती मातु ।
रामसागर अधम को आश्रय तू दे
दातु ॥

॥ श्री गायत्री चालीसा ॥

ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन
ज्योति प्रचण्ड ॥
शान्ति कान्ति जागृत
प्रगति रचना शक्ति अखण्ड ॥
१॥
जगत जननी मङ्गल
करनि गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन
काम ॥ २॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥॥
अक्षर चौविस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र
श्रुति गीता ॥॥
शाश्वत सतोगुणी सत रूपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥॥
हंसारूढ सितंबर धारी ।
स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-
बिहारी ॥॥
पुस्तक पुष्प कमण्डलु
माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन
विशाला ॥॥
ध्यान धरत पुलकित हित होई ।
सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई
॥॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अद्भुत माया ॥॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै
तुम्हारी ज्योति निराली ॥॥
तुम्हरी महिमा पार न पावैं

जो शारद शत मुख गुन गावैं
॥॥
चार वेद की मात पुनीता ।
तुम
ब्रह्माणी गौरी सीता ॥॥
महामन्त्र जितने जग माहीं ।
कोउ गायत्री सम नाहीं ॥॥
सुमिरत हिय में ज्ञान
प्रकासै ।
आलस पाप अविद्या नासै ॥॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥॥
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर
जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते
॥॥
तुम भक्तन की भक्त
तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते
प्यारे ॥॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जय जय जय
त्रिपदा भयहारी ॥॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जगमे आना ॥॥
तुमहिं जानि कछु रहै न
शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न
क्लेसा ॥॥
जानत तुमहिं तुमहिं व्है
जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई

माता तुम सब ठौर समाई ॥॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड
घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे
॥॥
सकल सृष्टि की प्राण
विधाता ।
पालक पोषक नाशक त्राता ॥॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पातकी भारी ॥॥
जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥॥
मंद बुद्धि ते बुधि बल
पावें ।
रोगी रोग रहित हो जावें ॥॥
दरिद्र मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥॥
गृह क्लेश चित
चिन्ता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥॥
सन्तति हीन सुसन्तति पावें

सुख संपति युत मोद मनावें
॥॥
भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें
॥॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥॥
घर वर सुख प्रद लहैं
कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रत
धारी ॥॥
जयति जयति जगदंब भवानी ।
तुम सम ओर दयालु न दानी ॥॥
जो सतगुरु सो दीक्षा पावे ।
सो साधन को सफल बनावे ॥॥
सुमिरन करे सुरूचि बडभागी ।
लहै मनोरथ गृही विरागी ॥॥
अष्ट
सिद्धि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥॥
ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी ।
आरत अर्थी चिन्तित भोगी ॥॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
सो सो मन वांछित फल पावें
॥॥
बल बुधि विद्या शील स्वभाउ

धन वैभव यश तेज उछाउ ॥॥
सकल बढें उपजें सुख नाना ।
जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥
यह चालीसा भक्ति युत पाठ
करै जो कोई ।
तापर
कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय

Tuesday, February 8, 2011

॥श्री हनुमान चालीसा ॥

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज
मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु,
जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेस बिकार॥
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि -पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के
संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
संकर सुवन केसरीनंदन। तेज
प्रताप महा जग बंदन॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे
को रसिया। राम लखन सीता मन
बसिया॥
सूक्ष्म रूप
धरि सियहिं दिखावा। बिकट
रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ
लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार
सुग्रीवहिं कीन्हा। राम
मिलाय राज पद दीन्हा।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन
माना। लंकेस्वर भए सब जग
जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख
माही। जलधि लाँधि गये अचरज
नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे
तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत
न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रच्छक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत
निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुडावै। मन
क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन
के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ
अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के
दाता। अस बर दीन
जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गोसाई।
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढै हनुमान चलीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल
मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय
बसहु सुर भूप॥

Monday, February 7, 2011

विद्या प्राप्ति के कुछ अचूक उपाय

• पूर्व की तरफ सिर करके
सोने से
विद्या की प्राप्ति होती है।
• विद्वानो के मत से
विद्या प्राप्ति हेतु ४
मुखी एवं ६ मुखी रूद्राक्ष
लाल धागे मे धारण करने से
व्यक्ति की बुद्धि तीव्र
ओर कुशाग्र एवं विद्या,
ज्ञान, उत्तम
वाणी की प्राप्त होकर जीवन
मे रचनात्मकता आति है
• पढाई मेज पर स्फटिक
का श्री यंत्र स्थापीत
करने से स्मरण
शक्ति तीव्रे होती हैं एवं
खराब विचार दूर होकर उत्तम
प्रकार
की चिंताधारा उत्पन्न
होती हैं, एवं
मां सरस्वती और
लक्ष्मी का आशिर्वाद सदैव
बना रेहता हैं।
• अपने पूजा स्थान पर
सरस्वती यंत्र स्थापीत कर
प्रति दिन धूप- दीप करने से
मां सरस्वती का आशिर्वाद
एवं कृपा सदैव
बनी रेहती हैं।
• पढाई करते समय पूर्व
या उत्तर दिशा की तरफ मुख
कर कर पढाई करें।
• पढाई करते समय स्फेद
या हलके रंग के
कपडो का चुनाव करे
ताकी ……….
• पढाई की किताब में
मौली का टुकडा रखने से
ज्ञान एवं विद्या ……………
• किताब में मोर के पंख
रखने से लाभ होता हैं।
• ज्ञान मुद्रा का प्रति-
दिन मात्र ५ मिनिट प्रयोग
करने से स्मरण
शक्ति …………….
• पढाई करने वाली मेज(टेबल)
पर शीशा नहीं रखना चहीये।
शीशा रखने से मानसिक
……………
• पढाई के समय अपने पीछे
खाली जगा न रखे अर्थात ठोस
दीवार की और पीठ कर ……………
• अपनी बायीं (राईट हेंड) और
पानी से भरा ग्लास रखें
…………..
• मेज(टेबल) पर यथा संभव कम
सामग्री रखे उस्से
एकाग्रता …………..
• मेज(टेबल) को दीवार से
थोडा दूर रखे सटाकर ………….
• रात को सोने से पूर्व
चांदी के ग्लास मे
पानी भरकर ……….
• भोजन करते समय चांदी के
बरतनो का उपयोग करने ………
• बच्चो को सोमवार का व्रत
कर शिव मंदिर में ………….
• बुध कि होरा विद्या-
बुद्धि अर्थात पढाई के ……..
• विद्वानो के मत से काँसे
के बर्तन में ………..
• अंजीर को बादाम एवं
पिस्ता के …………
• प्रतिदिन सूर्यनमस्कार
करने और सूर्य को…………..
• लोहे के बर्तन में भोजन
करने से बुद्धि का ………..
• अष्टमी को नारियल ………….
• स्मरण शक्ति को प्रबल
करने के लिये ……….
स्मरण शक्ति को प्रबल करने
के लिये ………………


अन्य अचूक प्रभावशाली उपाय
• बुधवार के दिन मंत्र
सिद्ध पूर्ण प्राण
प्रतिष्ठित एवं पूर्ण
चैतन्य युक्त सरस्वती कवच
को धारण करें।
• मंत्र सिद्ध पूर्ण प्राण
प्रतिष्ठित एवं पूर्ण
चैतन्य युक्त चार और
छः मुखी रुद्राक्ष धारण
करने से भी स्मरण
शक्ति बढती हैं।
• शुद्ध पन्ने (Emrald) रत्न
को अभिमंत्रीत कर धारण
करने से लाभ होता हैं।
• अपनी पूजन स्थान में
या पढाई करने वाले स्थान
या रुम में मंत्र सिद्ध
पूर्ण प्राण प्रतिष्ठित
एवं पूर्ण चैतन्य युक्त
सरस्वती यंत्र स्थापीत
करने से लाभ प्राप्त
होता हैं।
• हरे मरगच या हकीक
की माला………….
• परीक्षा में उत्तीर्ण
होने हेतु लाल रंग की कलम
(पैन) लें ………..
• मन कि एकाग्रता हेतु
प्रतिदिन प्राणायाम करें।
विद्यारंभ करने से पूर
भी प्राणायाम करना लाभ
प्रद होता हैं। प्राणायाम
से शरीर में शक्ति का संचार
होता हैं और
स्फूर्ति उत्पन्न
होती हैं।
सोने से पूर्व
सरस्वती मंत्र का जप करे
एवं सोते समय
भी सरस्वती मंत्र का जप
करते रहें।
परिक्षा के लिये प्रस्थान
करेने से पूर्व गणेश जी के
निम्न मंत्र
का ध्यानपूर्वक जप करके घर
से बाहर निकले करें।
ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्य
कोटि समप्रभः।
निर्विघ्नम्कुरु मे देव
सर्व कार्येषु सर्वदा॥
प्रश्न पत्र पर पर कुछ
भी लिखने से पूर्व उपर छोटे
अक्षरो में ………………… .
उपरोक्त प्रयोग के करने से
अवश्य लाभ प्राप्त
होता हैं।

॥ सरस्वती अष्टोत्तरनामावलीः ॥


सरस्वती अष्टोत्तरनामावलीः ॥
1. ॐ सरस्वत्यै नमः ॥
2. ॐ महाभद्रायै नमः ॥
3. ॐ महामायायै नमः ॥
4. ॐ वरप्रदायै नमः ॥
5. ॐ श्रीप्रदायै नमः ॥
6. ॐ पद्मनिलयायै नमः ॥
7. ॐ पद्माक्ष्यै नमः ॥
8. ॐ पद्मवक्त्रकायै नमः ॥
9. ॐ शिवानुजायै नमः ॥
10. ॐ पुस्तकभृते नमः ॥
11. ॐ ज्ञानमुद्रायै नमः ॥
12. ॐ रमायै नमः ॥
13. ॐ परायै नमः ॥
14. ॐ कामरूपायै नमः ॥
15. ॐ महाविद्यायै नमः ॥
16. ॐ महापातक नाशिन्यै
नमः ॥
17. ॐ महाश्रयायै नमः ॥
18. ॐ मालिन्यै नमः ॥
19. ॐ महाभोगायै नमः ॥
20. ॐ महाभुजायै नमः ॥
21. ॐ महाभागायै नमः ॥
22. ॐ महोत्साहायै नमः ॥
23. ॐ दिव्याङ्गायै नमः ॥
24. ॐ सुरवन्दितायै नमः ॥
25. ॐ महाकाल्यै नमः ॥
26. ॐ महापाशायै नमः ॥
27. ॐ महाकारायै नमः ॥
28. ॐ महांकुशायै नमः ॥
29. ॐ पीतायै नमः ॥
30. ॐ विमलायै नमः ॥
31. ॐ विश्वायै नमः ॥
32. ॐ विद्युन्मालायै
नमः ॥
33. ॐ वैष्णव्यै नमः ॥
34. ॐ चन्द्रिकायै नमः ॥
35. ॐ चन्द्रवदनायै नमः ॥
36. ॐ
चन्द्रलेखाविभूषितायै
नमः ॥
37. ॐ सावित्यै नमः ॥
38. ॐ सुरसायै नमः ॥
39. ॐ देव्यै नमः ॥
40. ॐ दिव्यालंकारभूषितायै
नमः ॥
41. ॐ वाग्देव्यै नमः ॥
42. ॐ वसुदायै नमः ॥
43. ॐ तीव्रायै नमः ॥
44. ॐ महाभद्रायै नमः ॥
45. ॐ महाबलायै नमः ॥
46. ॐ भोगदायै नमः ॥
47. ॐ भारत्यै नमः ॥
48. ॐ भामायै नमः ॥
49. ॐ गोविन्दायै नमः ॥
50. ॐ गोमत्यै नमः ॥
51. ॐ शिवायै नमः ॥
52. ॐ जटिलायै नमः ॥
53. ॐ विन्ध्यावासायै
नमः ॥
54. ॐ
विन्ध्याचलविराजितायै
नमः ॥
55. ॐ चण्डिकायै नमः ॥
56. ॐ वैष्णव्यै नमः ॥
57. ॐ ब्राह्मयै नमः ॥
58. ॐ
ब्रह्मज्ञानैकसाधनायै
नमः ॥
59. ॐ सौदामन्यै नमः ॥
60. ॐ सुधामूर्त्यै नमः ॥
61. ॐ सुभद्रायै नमः ॥
62. ॐ सुरपूजितायै नमः ॥
63. ॐ सुवासिन्यै नमः ॥
64. ॐ सुनासायै नमः ॥
65. ॐ विनिद्रायै नमः ॥
66. ॐ पद्मलोचनायै नमः ॥
67. ॐ विद्यारूपायै नमः ॥
68. ॐ विशालाक्ष्यै नमः ॥
69. ॐ ब्रह्मजायायै नमः ॥
70. ॐ महाफलायै नमः ॥
71. ॐ त्रयीमूर्तये नमः ॥
72. ॐ त्रिकालज्ञायै नमः ॥
73. ॐ त्रिगुणायै नमः ॥
74. ॐ शास्त्ररूपिण्यै
नमः ॥
75. ॐ शंभासुरप्रमथिन्यै
नमः ॥
76. ॐ शुभदायै नमः ॥
77. ॐ स्वरात्मिकायै नमः ॥
78. ॐ रक्तबीजनिहन्त्र्यै
नमः ॥
79. ॐ चामुण्डायै नमः ॥
80. ॐ अम्बिकायै नमः ॥
81. ॐ मुण्डकायप्रहरणायै
नमः ॥
82. ॐ धूम्रलोचनमदनायै
नमः ॥
83. ॐ सर्वदेवस्तुतायै
नमः ॥
84. ॐ सौम्यायै नमः ॥
85. ॐ सुरासुर नमस्कृतायै
नमः ॥
86. ॐ कालरात्र्यै नमः ॥
87. ॐ कलाधरायै नमः ॥
88. ॐ रूपसौभाग्यदायिन्यै
नमः ॥
89. ॐ वाग्देव्यै नमः ॥
90. ॐ वरारोहायै नमः ॥
91. ॐ वाराह्यै नमः ॥
92. ॐ वारिजासनायै नमः ॥
93. ॐ चित्रांबरायै नमः ॥
94. ॐ चित्रगन्धायै नमः ॥
95. ॐ
चित्रमाल्यविभूषितायै
नमः ॥
96. ॐ कान्तायै नमः ॥
97. ॐ कामप्रदायै नमः ॥
98. ॐ वन्द्यायै नमः ॥
99. ॐ विद्याधरसुपूजितायै
नमः ॥
100. ॐ श्वेताननायै नमः ॥
101. ॐ नीलभुजायै नमः ॥
102. ॐ चतुर्वर्गफलप्रदायै
नमः ॥
103. ॐ चतुरानन
साम्राज्यायै नमः ॥
104. ॐ रक्तमध्यायै नमः ॥
105. ॐ निरंजनायै नमः ॥
106. ॐ हंसासनायै नमः ॥
107. ॐ नीलजङ्घायै नमः ॥
108. ॐ
ब्रह्मविष्णुशिवात्मिकायै
नमः ॥
॥॥
इति श्री सरस्वति अष्टोत्तरशत
नामावलिः ॥॥

Sunday, February 6, 2011

॥ अथ देव्याः कवचम् ॥ (संस्कृत)

अस्य श्रीचण्डीकवचस्य
ब्रह्मा ऋषि :, अनुष्टुप्
छन्द:, चामुण्डा देवता,
अङ्गन्यासोक्त
मातरो बीजम् ,
दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्,
श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे
सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे
विनियोग :।
नमश्चण्डिकायै॥
मार्कण्डेय उवाच
यद्गुह्यं परमं लोके
सर्वरक्षाकरं नृणाम्। यन्न
कस्यचिदाख्यातं तन्मे
ब्रूहि पितामह॥ 1॥
ब्रह्मोवाच
अस्ति गुह्यतमं विप्र
सर्वभूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं
तच्छृणुष्व महामुने॥ 2॥
प्रथमं शैलपुत्री च
द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं
चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥
3 ॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं
कात्यायनीति च। सप्तमं
कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥
4 ॥
नवं सिद्धिदात्री च
नवदुर्गा : प्रकीर्तिता:।
उक्त ान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव
महात्मना॥ 5॥
अग्निना दह्यमानस्तु
शत्रुमध्ये गतो रणे। विषमे
दुर्गमे चैव भयार्ता : शरणं
गता:॥6॥
न तेषां जायते किंचिदशुभं
रणसंकटे। नापदं तस्य
पश्यामि शोकदु :खभयं न हि॥
7॥
यैस्तु
भक्त्या स्मृता नूनं
तेषां वृद्धि : प्रजायते। ये
त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे
तान्न संशय :॥8॥
प्रेतसंस्था तु
चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना॥
9 ॥
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मी :
पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥
10 ॥
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥
11 ॥
इत्येता मातर: सर्वा:
सर्वयोगसमन्विता:।
नानाभरणशोभाढया नानारत्नोपशोभिता:॥
12॥
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्य:
क्रोधसमाकुला:। शङ्खं
चक्रं गदां शक्तिं हलं च
मुसलायुधम्॥ 13॥
खेटकं तोमरं चैव परशुं
पाशमेव च। कुन्तायुधं
त्रिशूलं च
शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥
14 ॥
दैत्यानां देहनाशाय
भक्त ानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं
देवानां च हिताय वै॥ 15॥
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे
महाघोरपराक्रमे। महाबले
महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥
16 ॥
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये
शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु
मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥
17 ॥
दक्षिणेऽवतु
वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद्
वायव्यां मृगवाहिनी॥ 18॥
उदीच्यां पातु
कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊध्र्व ब्रह्माणि मे
रक्षेदधस्ताद्
वैष्णवी तथा॥ 19॥
एवं दश
दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया मे चाग्रत : पातु
विजया पातु पृष्ठत:॥ 20॥
अजिता वामपाश्र्वे तु
दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूिर्ध्न
व्यवस्थिता॥ 21॥
मालाधरी ललाटे च
भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च
भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च
नासिके॥ 22॥
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये
श्रोत्रयोद्र्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले
तु शांकरी॥ 23॥
नासिकायां सुगन्धा च
उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च
सरस्वती॥ 24॥
दन्तान् रक्षतु
कौमारी कण्ठदेशे तु
चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च
महामाया च तालुके॥ 25॥
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद्
वाचं मे सर्वमङ्गला।
ग्रीवायां भद्रकाली च
पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥ 26॥
नीलग्रीवा बहि:कण्ठे
नलिकां नलकूबरी। स्कन्धयो:
खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे
वज्रधारिणी॥ 27॥
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु
च।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥
28 ॥
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मन:
शोकविनाशिनी। हृदये
ललिता देवी उदरे
शूलधारिणी॥ 29॥
नाभौ च कामिनी रक्षेद्
गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढं गुदे
महिषवाहिनी॥ 30॥
कटयां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे
महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥
31 ॥
गुल्फयोर्नारसिंही च
पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु
श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥
32 ॥
नखान् दंष्ट्राकराली च
केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं
वागीश्वरी तथा॥ 33॥
रक्त
मज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च
पित्तं च मुकुटेश्वरी॥
34 ॥
पद्मावती पद्मकोशे कफे
चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥
35 ॥
शुक्रं ब्रह्माणि मे
रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं
मनो बुद्धिं रक्षेन्मे
धर्मधारिणी॥ 36॥
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं
च समानकम्। वज्रहस्ता च मे
रक्षेत्प्राणं
कल्याणशोभना॥ 37॥
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे
स्पर्शे च योगिनी। सत्त्वं
रजस्तमश्चैव
रक्षेन्नारायणी सदा॥ 38॥
आयू रक्षतु वाराही धर्म
रक्षतु वैष्णवी। यश :
कीर्ति च लक्ष्मीं च धनं
विद्यां च चक्रिणी॥ 39॥
गोत्रमिन्द्राणि मे
रक्षेत्पशून्मे रक्ष
चण्डिके। पुत्रान्
रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्या रक्षतु
भैरवी॥ 40॥
पन्थानं
सुपथा रक्षेन्मार्ग
क्षेमकरी तथा। राजद्वारे
महालक्ष्मीर्विजया सर्वत:
स्थिता॥41॥
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं
वर्जितं कवचेन तु। तत्सर्व
रक्ष मे
देवि जयन्ती पापनाशिनी॥
42 ॥
पदमेकं न गच्छेत्तु
यदीच्छेच्छुभमात्मन:।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र
यत्रैव गच्छति॥ 43॥
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजय:
सार्वकामिक:। यं यं
चिन्तयते कामं तं तं
प्रापनेति निश्चितम्।
परमैश्वर्यमतुलं
प्राप्स्यते भूतले
पुमान्॥ 44॥
निर्भयो जायते मर्त्य:
संग्रामेष्वपराजित:।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्य:
कवचेनावृत: पुमान्॥45॥
इदं तु देव्या: कवचं
देवानामपि दुर्लभम्। य:
पठेत्प्रयतो नित्यं
त्रिसन्धयं
श्रद्धयान्वित :॥46॥
दैवी कला भवेत्तस्य
त्रैलोक्येष्वपराजित:।
जीवेद् वर्षशतं
साग्रमपमृत्युविवर्जित:॥
47॥
नश्यन्ति व्याधय: सर्वे
लूताविस्फोटकादय:। स्थावरं
जङ्गमं चैव कृत्रिमं
चापि यद्विषम्॥ 48॥
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचरा : खेचराश्चैव
जलजाश्चोपदेशिका:॥49॥
सहजा कुलजा माला डाकिनी शकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च
महाबला :॥50॥
ग्रहभूतपिशाचाश्च
यक्षगन्धर्वराक्षसा:।
ब्रह्मराक्षसवेताला:
कूष्माण्डा भैरवादय:॥51॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य
कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद्
राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं
परम्॥ 52॥
यशसा वर्धते
सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु
कवचं पुरा॥ 53॥
यावद्भूमण्डलं धत्ते
सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संतति:
पुत्रपौत्रिकी॥54॥
देहान्ते परमं स्थानं
यत्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्रापनेति पुरुषो नित्यं
महामायाप्रसादत :॥55॥
लभते परमं रूपं शिवेन सह
मोदते॥ \॥56॥

शिवजी की आरती

शिव
जी की बड़ी आरती ।

जय
शिव
ओमकारा हो शिव
पार्वती प्यारा ,हो शिव
ऊपर
जलधारा ।

ब्रह्मा विष्णु
सदाशिव
अर्धंगी धारा ।


हर
हर
हर
महादेव


एकानन
चतुरानन
पंचानन
राजै

हंसासन
गरुडासन
वृषवाहन साजै । ।
दोए भुज चार चतुर्भुज
दशभुज ते सोहै । तीनों रूप
निरखता त्रिभुवन मन मोहै ।

अक्षमाला वनमाला मुंडमाला धारी ।
चन्दन मृगमद सोहे भले
शशिधारी । ।
श्वेताम्बर पीताम्बर
बाघम्बर अंग ।सनकादिक
ब्रह्मादिक मुनि आदिक संग ।

करमध्ये कमंडल चक्र
त्रिशूल धर्ता । दुःख
हरता जग पालन करता । ।
शिवजी के हाथों में कंगन ,
कानन में कुंडल , गल
मोतियाँ माला । ।
जटा में गंगा वीराजै ,
मस्तक में चंदा साजै, ओढत
मृगछाला । ।
चौसठ योगिनी मंगल गावत
नृत्य करत भैरू । बाजत ताल
मृदंगा अरु बाजत डमरू ।
सचिदानंद स्वरूपा त्रिभुवन
के राजा ।चारों वेद उचारत ,
अनहद के दाता । ।
सावित्री भावत्री पार्वती अंगी ।
अर्धंगी प्रियंगी शिव
गौरा संगी । ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
जानत अविवेका । प्रणव अक्षर
दोऊ मध्य ये तीनों एका । ।
पार्वती पर्वत में वीराजै
शंकर कैलाशा । आक धतूरे
का भोजन भस्मि में वासा । ।
श्री काशी में विश्वनाथ
वीराजै नंदा ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावै
महिमा अति भारी । ।
शिवजी की आरती जो कोई नर
गावे । कहत शिवानन्द
मनवांछित फल पावै । ।

शिवजी की पंचामृत पुजा विधि

कामनाओं की पूर्ति के लिए
भगवान शिव की उपासना बहुत
ही फलदायी मानी गई है।
भगवान शिव की प्रसन्नता के
इन खास दिनों में सोमवार
का दिन बहुत महत्व रखता है।
शास्त्रों में अलग-अलग
कामनाओं की पूर्ति के लिए
शिव की अलग -अलग तरह
की पूजा बताई गई है। किंतु
सोमवार के दिन शिव
की पंचामृत पूजा हर
मनौती को पूरा करने
वाली मानी गई है। इस
पूजा में खासतौर पर शिव
को दूध, दही, घी, शक्कर और
शहद से स्नान
कराया जाता है। पंचामृत
स्नान व पूजा न केवल
मनौतियां पूरी करती है ,
बल्कि वैभव भी देती है। साथ
ही अनेक परेशानियों और
पीड़ा का अंत होता है।
भगवान शिव की पंचामृत
स्नान और पूजन का तरीका -
- सुबह जल्दी उठकर स्नान कर
स्वच्छ वस्त्र पहन घर
या देवालय में शिवलिंग के
सामने बैठें। - सबसे पहले
शिवलिंग पर जल और उसके बाद
क्रम से दूध , दही, घी, शहद
और शक्कर चढ़ाएं। हर
सामग्री के बाद शिवलिंग
का जल से स्नान कराएं।
पूजा के दौरान
पंचाक्षरी या षडाक्षरी मंत्र
ऊँ नम : शिवाय बोलते रहें। -
आखि़र में पांच
सामग्रियों को मिलाकर शिव
को स्नान कराएं। - पंचामृत
स्नान के बाद गंगाजल
या शुद्धजल से स्नान
कराएं। - पंचामृत पूजन के
साथ रुद्राभिषेक
पूजा शीघ्र मनोवांछित
फलदायक मानी जाती है। यह
पूजन किसी विद्वान
ब्राह्मण से
कराया जाना श्रेष्ठ
होता है। - पंचामृत स्नान
और पूजा के बाद पंचोपचार
पूजा करें। गंध , चंदन,
अक्षत, सफेद फूल और
बिल्वपत्र चढ़ाएं। नैवेद्य
अर्पित करें। - शिव की धूप
या अगरबत्ती और दीप से
आरती करें। - शिव
रुद्राष्टक, शिवमहिम्र
स्त्रोत, पंचाक्षरी मंत्र
का पाठ और जप करें
या कराएं।
- आरती के बाद पूजा में हुई
गलतियों के लिए
क्षमा मांगे और
मनौती करें। - शिव
की पंचामृत पूजा ब्राह्मण
से कराने पर पूर्ण फल
तभी मिलता है जब दान -
दक्षिणा भेंट की जाए। इसलिए
ऐसा करना न भूलें।

शिव पंचाक्षर स्त्रोतम्

नागेन्द्र हाराय
त्रिलोचनाय,
भस्मांगरागाय महेश्वराय |
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय,
तस्मै 'न' काराय
नमः शिवाय ||१||
मन्दाकिनी
सलिलचन्दनचर्चिताय ,
नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय |
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय ,
तस्मै 'म' काराय नमः शिवाय
||२ ||
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द ,
सूर्याय दक्षध्वरनाशकाय |
श्रीनीलकंठाय
वृष ध्वजाय,
तस्मै 'शि' काराय नमः
शिवाय || ३ ||
वशिष्ठकुम्भोदभवतौतमार्य ,
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय
|
चंद्रार्कवैश्वानरलोचनाय ,
तस्मै 'व्' काराय नमः
शिवाय || ४ ||
यक्षस्वरूपाय जटाधराय ,
पिनाकहस्ताय सनातनाय |
दिव्याय देवाय दिगम्बराय,
तस्मै 'य' काराय नमः
शिवाय || ५ ||

Friday, February 4, 2011

!! दुर्गासप्तशती पाठ विधि !!

मार्कण्डेय पुराण में
ब्रह्माजी ने मनुष्यों के
रक्षार्थ परमगोपनीय साधन ,
कल्याणकारी देवी कवच एवं
परम पवित्र उपाय संपूर्ण
प्राणियों को बताया ,
जो देवी की नौ मूर्तियाँ-
स्वरूप हैं, जिन्हें 'नव
दुर्गा' कहा जाता है,
उनकी आराधना आश्विन शुक्ल
पक्ष की प्रतिपदा से
महानवमी तक की जाती है।
श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ
मनोरथ सिद्धि के लिए
किया जाता है ;
क्योंकि श्री दुर्गा सप्तशती दैत्यों के
संहार की शौर्य गाथा से
अधिक कर्म , भक्ति एवं ज्ञान
की त्रिवेणी हैं। यह
श्री मार्कण्डेय पुराण
का अंश है। यह
देवी महात्म्य धर्म , अर्थ,
काम एवं मोक्ष
चारों पुरुषार्थों को प्रदान
करने में सक्षम है।
सप्तशती में कुछ ऐसे
भी स्रोत एवं मंत्र हैं ,
जिनके विधिवत पारायण से
इच्छित
मनोकामना की पूर्ति होती है।
* सर्वकल्याण एवं शुभार्थ
प्रभावशाली माना गया है-
सर्व मंगलं मांगल्ये शिवे
सर्वाथ साधिके ।
शरण्येत्र्यंबके
गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥
* बाधा मुक्ति एवं धन-
पुत्रादि प्राप्ति के लिए
इस मंत्र का जाप फलदायी है-
सर्वाबाधा वि निर्मुक्तो धन
धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यों मत्प्रसादेन
भवष्यति न संशय॥
* आरोग्य एवं सौभाग्य
प्राप्ति के लिए इस
चमत्कारिक फल देने वाले
मंत्र को स्वयं
देवी दुर्गा ने देवताओं
को दिया गया है -
देहि सौभाग्यं आरोग्यं
देहि में परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं
देहि यशो देहि द्विषोजहि॥
* विपत्ति नाश के लिए-
शरणागतर्दनार्त परित्राण
पारायणे।
सर्व स्यार्ति हरे
देवि नारायणि नमोऽतुते॥
* ऐश्वर्य, सौभाग्य,
आरोग्य,
संपदा प्राप्ति एवं शत्रु
भय मुक्ति -मोक्ष के लिए-
ऐश्वर्य यत्प्रसादेन
सौभाग्य -आरोग्य सम्पदः।
शत्रु
हानि परो मोक्षः स्तुयते
सान किं जनै॥
* विघ्ननाशक मंत्र-
सर्वबाधा प्रशमनं
त्रेलोक्यसयाखिलेशवरी।
एवमेय त्याया कार्य
मस्माद्वैरि विनाशनम्॥
जाप विधि- नवरात्रि के
प्रतिपदा के दिन
घटस्थापना के बाद संकल्प
लेकर प्रातः स्नान करके
दुर्गा की मूर्ति या चित्र
की पंचोपचार या दक्षोपचार
या षोड्षोपचार से गंध ,
पुष्प, धूप दीपक नैवेद्य
निवेदित कर पूजा करें। मुख
पूर्व या उत्तर दिशा की ओर
रखें।
शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर
रुद्राक्ष
या तुलसी या चंदन
की माला से मंत्र का जाप एक
माला से पाँच माला तक पूर्ण
कर अपना मनोरथ कहें।
पूरी नवरात्रि जाप करने से
वांच्छित मनोकामना अवश्य
पूरी होती है। समयाभाव में
केवल दस बार मंत्र का जाप
निरंतर प्रतिदिन करने पर
भी माँ दुर्गा प्रसन्न
हो जाती हैं।
दुर्गेदुर्गति नाशिनी॥

जय श्री हनुमान

हमारे सनातन धर्कम मे रुद्हारा अवतार हनुमान सदैव विराजमान है ,मनुष्य हो या देवी,देवता सभी के कार्य को सम्पन्न करते है हनुमान जी। राम भक्त ,दुर्गा भक्त हो या शिव भक्त,सभी मार्गो मे परम सहायक होते है हनुमान। ये शिव अंश भी ,शिव पुत्र भी है राम के भक्त भी वही सीता के पुत्र हैं।ये कपि मुख है ,वही पंचमुख,सप्तमुख,और ग्यारहमुख धारण करने वाले है।ये सभी जगह सूपूजित है कारण ये संकटमोचन है। माता ,पिता के लिए अपने संतान से प्यारा कोई नही होता ,जैसै गौरी पुत्र गणेश है,वही शिवांश देवी पुत्र बटुक भैरव है वही शिवांश राम भक्त हनुमान जी है।


कहाँ गया है कि बिना गुरु
ज्ञान नही होता है
वही बिना कुल देवता के
कृपा बिना किसी अन्य देव
की कृपा प्राप्त
नहीं होती है। प्रथम
श्री गणेश को स्मरण पूजन
किए
बिना पूजा प्रारम्भनहीं होता हैं।
महाविद्या की साधना करनी हो ,वहाँ बिना बटुक
कृपा आगे बढ़ना कठिन है।
असली माता पिता के पास ये
पुत्र ही पहुँचा सकते
है ,परन्तु अपने इस जीवन के
माता पिता की सेवा तथा आदर
किए बिना यह संभव
ही नहीं है।जीवन के
बाधा ,संकट का निवारण न
हो तो धर्म मार्ग में
बढ़ना दुष्कर है।
मूर्ति पूजा हो या निंरकार,परन्तु
सत्य यही है कि परमात्मा एक
हैं ,तभी तो कहा गया है
कि सत्यम,शिवम, सुन्दरम।
सत्य ही शिव है,शिव
ही सुन्दर है बाकी सब गौण।
एक शिव ही सृष्टि में सत्य
है ,वही क्रिया शक्ति,चित
शक्ति एवं इच्छा शक्ति के
रुप में अर्धनारीश्वर
है ,शिव के बायें भाग में
शक्ति हैं,वही शिव के एक
रुप है हरि हरात्मक आधा शिव
आधा विष्णु ,ये शिव की अलग
अलग लीला एंव रुप है।शिव
सुन्दर है
वही उनकी शक्ति सुन्दरी के
नाम से विख्यात है ,फिर
तो शिव के द्वारा रचित
श्री रामायण का हनुमत
कान्ड को उन्होंने सुन्दर
कान्ड का नाम रखा ,यह विशेष
रहस्यपूर्ण है।सुन्दर
कान्ड के प्रत्येक श्लोक
का अर्थ समझेगे तो उस शिव
के सुन्दर रुप का मर्म समझ
में आ जायेगा।सुन्दर कान्ड
का पाठ जहाँ होता है सारे
अभाव,पाप,रोग विकार
स्वतःनष्ट होने
लगता है ,हमे सिर्फ पूर्ण
श्रद्धा से होकर पाठ
करना चाहिए।पाठ से पूर्व
हमें क्या करना चाहिए यह
भी महत्वपूर्ण है। सुन्दर
कान्ड मे
शिवशक्ति ,सीताराम,वरदान,बल,धन,शुभ,दमन,अहंकार
का विसर्जन,भक्ति की परकाष्टा,प्रेम,मिलन
विश्वास,धैर्य,बौद्धिक
विकास क्यों नहीं प्राप्त
किया जा सकता हैं।हमारे
हनुमान जी वे सत्यम शिव के
सुन्दर ,लीलाधर
हैं,सभी उनके कृपा से
प्राप्त हो जाता है।हनुमत
उपासना व्यापक है ,हर कार्य
सुलभ है।प्रथम गुरु,गणेश
का पूजन कर राम परिवार
ऋषि पूजन कर हनुमत
उपासना करने से ही पूर्ण
सफलता प्राप्त होती है।मैं
हनुमत का विशेष पाठ प्रयोग
लिख रहा हूँ ,जो चमत्कारिक
है और पूर्ण फल प्रदान
करनें मे सक्षम ।
श्री रामायण के प्रथम
रचनाकार शिव है फिर
ऋषि बाल्मिकी ,फिर
गोस्वामी तुलसीदास जी है ।
मंत्र कवच के
ऋषि देवता भिन्न भिन्न है।
बजरंग बाण जो प्राप्त
होता है वह भी अधुरा हैं।
फिर भी लोगों को लाभ
मिलता है। एक एक अक्षर
शक्ति सम्पन्न है।
श्री हनुमान जी शिवांश है
परन्तु वैष्णव परिवार से
है इस कारण इनके पूजा में
मांस ,मदिरा,स्त्री भोग
वर्जित है।गृहस्थ आश्रम के
भक्त इन्हें अधिक प्रिय है
परन्तु साधना काल में नियम
का पालन अवश्य करे।
स्त्री भक्त मासिक धर्म
में इनकी साधना न करें।
श्री हनुमान चालीसा बहुत
प्रभावी एवं प्रचलित हैं,
शनिग्रह से प्रभावित
हो या राहुकेतु से भूत
पिशाच हो या रोग
व्याधि नित्य१ ,३,७,११,२१,३१,५१,१०८
बार पाठ करने से
कामना पूर्ण होती है।यह
परिक्षित है।श्री शिव
पार्वती सहित गणेश नमस्कार
कर ,सीताराम,सपरिवार
का ध्यान कर
श्री गोस्वामी तुलसीदास
जी को प्रणाम करे ,।विशेष
लाभ के लिए तिल का तेल और
चमेली का तेल मिलाकर लाल
बती का दीपक
लगा लें ,पूर्व,उतर मुख करके
थोड़ा गुड़,का लड्डू
या किशमिश का प्रसाद अर्पण
कर पाठ आरम्भ करें।कुछ
विशेष मंत्र
का विधि प्रयोग दे
रहा हूँ ,इससे अवश्य
कामना या संकट का निवारण
होता है।
१ . भयंकर,आपति आने पर
हनुमान जी का ध्यान करके
रूद्राक्ष माला पर १०८ बार
जप करने से कुछ
ही दिनों में सब कुछ
सामान्य हो जाता है।
मंत्र :-त्वमस्मिन् कार्य
निर्वाहे प्रमाणं हरि सतम।
तस्य चिन्तयतो यत्नों दुःख
क्षय करो भवेत्॥
२ . शत्रु,रोग
हो या दरिद्रता,बंधन
हो या भय निम्न मंत्र का जप
बेजोड़ है ,इनसे
छुटकारा दिलाने में यह
प्रयोग अनूभुत है।नित्य
पाँच
लौंग ,सिनदुर,तुलसी पत्र के
साथ अर्पण कर सामान्य मे एक
माला ,विशेष में पाँच
या ग्यारह माला का जप करें।
कार्य पूर्ण होने पर
१०८बार ,गूगूल,तिल धूप,गुड़
का हवन कर लें।आपद काल में
मानसिक जप से भी संकट
का निवारण होता है।
मंत्र :-मर्कटेश महोत्साह
सर्व शोक विनाशनं,शत्रु
संहार माम रक्ष श्रियम
दापय में प्रभो॥
३ . अनेकानेक रोग से भी लोग
परेशान रहते है,इस कारण
श्री हनुमान जी का तीव्र
रोग हर मंत्र का जप
करनें ,जल,दवा अभिमंत्रित
कर पीने से असाध्य रोग
भी दूर होता है। तांबा के
पात्र में जल भरकर सामने रख
श्री हनुमान जी का ध्यान कर
मंत्र जप कर जलपान करने से
शीघ्र रोग दूर होता है।
श्री हनुमान
जी का सप्तमुखी ध्यान कर
मंत्र जप करें।
मंत्र :-ॐ नमो भगवते सप्त
वदनाय षष्ट गोमुखाय,सूर्य
रुपाय सर्व रोग हराय
मुक्तिदात्रे ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ॥

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