Friday, February 11, 2011

॥ श्री गायत्री चालीसा ॥

ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन
ज्योति प्रचण्ड ॥
शान्ति कान्ति जागृत
प्रगति रचना शक्ति अखण्ड ॥
१॥
जगत जननी मङ्गल
करनि गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन
काम ॥ २॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥॥
अक्षर चौविस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र
श्रुति गीता ॥॥
शाश्वत सतोगुणी सत रूपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥॥
हंसारूढ सितंबर धारी ।
स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-
बिहारी ॥॥
पुस्तक पुष्प कमण्डलु
माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन
विशाला ॥॥
ध्यान धरत पुलकित हित होई ।
सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई
॥॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अद्भुत माया ॥॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै
तुम्हारी ज्योति निराली ॥॥
तुम्हरी महिमा पार न पावैं

जो शारद शत मुख गुन गावैं
॥॥
चार वेद की मात पुनीता ।
तुम
ब्रह्माणी गौरी सीता ॥॥
महामन्त्र जितने जग माहीं ।
कोउ गायत्री सम नाहीं ॥॥
सुमिरत हिय में ज्ञान
प्रकासै ।
आलस पाप अविद्या नासै ॥॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥॥
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर
जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते
॥॥
तुम भक्तन की भक्त
तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते
प्यारे ॥॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जय जय जय
त्रिपदा भयहारी ॥॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जगमे आना ॥॥
तुमहिं जानि कछु रहै न
शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न
क्लेसा ॥॥
जानत तुमहिं तुमहिं व्है
जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई

माता तुम सब ठौर समाई ॥॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड
घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे
॥॥
सकल सृष्टि की प्राण
विधाता ।
पालक पोषक नाशक त्राता ॥॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पातकी भारी ॥॥
जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥॥
मंद बुद्धि ते बुधि बल
पावें ।
रोगी रोग रहित हो जावें ॥॥
दरिद्र मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥॥
गृह क्लेश चित
चिन्ता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥॥
सन्तति हीन सुसन्तति पावें

सुख संपति युत मोद मनावें
॥॥
भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें
॥॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥॥
घर वर सुख प्रद लहैं
कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रत
धारी ॥॥
जयति जयति जगदंब भवानी ।
तुम सम ओर दयालु न दानी ॥॥
जो सतगुरु सो दीक्षा पावे ।
सो साधन को सफल बनावे ॥॥
सुमिरन करे सुरूचि बडभागी ।
लहै मनोरथ गृही विरागी ॥॥
अष्ट
सिद्धि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥॥
ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी ।
आरत अर्थी चिन्तित भोगी ॥॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
सो सो मन वांछित फल पावें
॥॥
बल बुधि विद्या शील स्वभाउ

धन वैभव यश तेज उछाउ ॥॥
सकल बढें उपजें सुख नाना ।
जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥
यह चालीसा भक्ति युत पाठ
करै जो कोई ।
तापर
कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय

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